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Sunday 28 December 2014

सुदर्शन चक्र के वारे में कुछ विशेष

सुदर्शन चक्र का नाम श्रीकृष्णजी के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। अति आवश्यक होने पर ही इसका प्रयोग किया जाता रहा है। यह खुद जितना रहस्यमय है उतना ही इसका निर्माण और संचालन,तो आइए जानें कुछ बातें सुदर्शन चक्र के बारे में।
  1. भगवान विश्वकर्मा की बेटी का विवाह भगवान सूर्य से हुआ था। शादी के बाद भी उनकी बेटी खुश नहीं थी, कारण, सूर्य की गर्मी और उनका ताप जिसके कारण वो अपना वैवाहिक जीवन नहीं जी पा रही थी, और फिर बेटी के कहने पर भगवान ने सूर्य से थोड़ी सी चमक और ताप ले के पुष्पक विमान का निर्माण किया।
    इसके साथ ही साथ भगवान शिव के त्रिशूल और भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र का निर्माण किया था।
  2. ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के तप से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें दुश्मनों का नाश करने के लिए चक्र भेट में दिया था।
  3. पुराणों व अन्य धर्मग्रंथों में जिन अस्त्र-शस्त्रों का विवरण मिलता है उनमें सुदर्शन चक्र भी एक है। विभिन्न देवताओं के पास अपने-अपने चक्र हुआ करते थे।
  4. शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु था। विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र था। देवी के चक्र को मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था।
  5. सुदर्शन चक्र का नाम आते ही विराट रूप वाले श्रीकृष्ण का चित्र उभर आता है। सुदशर्न-चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
  6. परमाणु-बम के समान ही सुदर्शन चक्र के विज्ञान को भी अत्यंत गुप्त रखा गया है। गोपनीयता शायद इसलिये रखी गई होगी कि इस अमोघ अस्त्र की जानकारी देवताओं को छोड़ दूसरों को ना लग जाये।
  7. प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्री विष्णु को सौंप दिया था। जरुरत पडऩे पर श्री विष्णु ने इसे देवी को प्रदान कर दिया।
  8. इस आयुध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर यह हवा के प्रवाह से मिल कर प्रचंड़ वेग से अग्नि प्रज्जवलित कर दुश्मन को भस्म कर देता था। यह अत्यंत सुंदर, तीव्रगामी, तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था।
  9. भगवान श्री कृष्ण के पास यह देवी की कृपा से आया। यह चांदी की शलाकाओं से निर्मित था। इसकी ऊपरी और निचली सतहों पर लौह शूल लगे हुए थे। इसके साथ ही इसमें अत्यंत विषैले किस्म के विष, जिसे द्विमुखी पैनी छुरियों मे रखा जाता था, इसका भी उपयोग किया गया था। इसके नाम से ही विपक्षी सेना में मौत का भय छा जाता था।

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